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आधुनिकता की ओर बढ़ते कदम और तकनीक के साथ तालमेल ने हमारी जिंदगी को सहज, शिष्ट और स्टाइलिश बना दिया है, इसके बावजूद आज भी हम अपनी दकियानुसी सोच में लचक पैदा नहीं कर पाए हैं. खासकर महिलाओं के प्रति हमारी सोच भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में कड़वाहट की तरह है जो कभी समाप्त नहीं हो सकती. ऐसे समाज में एक 11 साल की आदिवासी बच्ची अपने मजबूत इरादों के साथ हर विपत्ति का सामना करते हुए आगे बढ़े, यह सचमुच में उन लोगों को तमाचा है जो गाहे बगाहे कह देते हैं ‘लड़की है इसके बस का कुछ नहीं है’.
सोम्बरी सबर नाम की यह बच्ची पांचवी कक्षा में पढ़ती है. खास बात यह कि वह लकड़ी बेचकर अपना घर चलाती है और नियमित रूप से रोजाना स्कूल भी जाती है. दरअसल जब सोम्बरी छोटी थी तब टीबी की बीमारी से उसकी मां का निधन हो गया और उसके पिता रतन सबर भी हाल ही में दुनिया को छोड़ चले.
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घर में आई ऐसी विपत्ति में सोम्बरी को पीड़ा तो बहुत हुई लेकिन उसका हौसला एक चट्टान की तरह टस से मस नहीं हुआ. माता-पिता के निधन के बाद सगे-संबंधियों में ऐसा कोई नहीं था जो उसकी सहायता करे. वह अकेले टूटे-फूटे इंदिरा आवास के एक घर में रहती है और अपना गुजर बसर करने के लिए जलने वाली लकड़ी बेचती है.
पांचवी कक्षा में पढ़ने वाली सोम्बरी एक दिन भी क्लास नहीं छोड़ती. वह कभी फेल नहीं हुई. सोम्बरी का कहाना कि मेरे पिता का सपना मुझे शिक्षित बनाना था. असम के दुमुरिया की रहने वाली सोम्बरी ने अपनी जिंदादिली का परिचय सबसे कराया जिससे प्रभावित होकर लोगों ने उसकी सहायता करनी चाही.
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उसका हौसला और पढ़ने की लगन को जब गैर सरकारी और निजी संगठनों ने देखा तो उसकी सहायता करने के लिए आगे आए. यही नहीं, टाटा स्टील और आनंद मार्ग आश्रम उसे गोद लेना चाहते हैं. सोम्बरी का परिश्रम और लगन को देखकर एक शिक्षक जोड़े ने तो उसे अपने घर में जगह देने की इच्छा जाहिर की. जिला बाल संरक्षण अधिकारी चंचल कुमार भी सोम्बरी से उसके घर जाकर मिले और उसे एक नया घर देने का निर्णय लिया…Next
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