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चौंकिए मत! यह एक हकीकत है. फरिश्ते हमेशा बचाने के लिए नहीं, मारने के लिए भी आ सकते हैं. पर वह फरिश्ता कैसे हुए? हुए! क्योंकि उसने ही आकर किसी के अन्दर की जादुई ताकत का उसको एहसास कराया. कहने को तो कुछ भी कह सकते हैं पर करना उतना ही मुश्किल होता है, कहना जितना आसान लगता है. फिर भी अगर बुद्धिजीवियों ने आसमान में सुराख कर सकने की बात कही होगी तो कुछ तो सच होगा. इस औरत को देखिए, मौत के फरिश्तों और औरतों को लाचार समझने की आपकी सोच बदल जाएगी, ऐसा हमारा दावा है.
ऐसे देखा जाए तो सुसान वाल्टर्स एक बहुत ही साधारण महिला हैं. ऐसी कोई असाधारण उपलब्धि नहीं है उनकी जिसके लिए लोग उनको याद करें. फिर भी सुसान आज खबरों में हैं इसका एकमात्र कारण है सुसान का महिला होना. सुनकर थोड़ा अजीब लग सकता है कि सिर्फ एक महिला होने के कारण कोई सुर्खियों में क्यों है? महिलाएं दुनिया में कोई अजूबा जीव तो हैं नहीं. जी हाँ, सच है कि महिलाएं दुनिया का अजूबा नहीं हैं और न ही सुसान इस तरह कोई अजूबा हैं पर सुसान ने वह कर दिखाया है जो साधारण रूप से कोई महिला नहीं कर सकती. शायद सुसान की जगह वहां कोई और औरत होती तो लाचार नारी पर अत्याचार होने की एक और साधारण कहानी बन चुकी होती (महिलाओं पर अत्याचार दुनिया के लिए बहस और संवेदना का मुद्दा हो सकता है लेकिन कोई असाधारण कहानी नहीं).
एक अनपढ़ महिला जो पूरे गांव की मसीहा बन गई
अगर आपको लगता है कि सिर्फ भारत में महिलाओं पर अत्याचार होता है तो आपको यह जरूर पढ़ना चाहिए. पोर्टलैंड की सुसान वाल्टर्स की यह कहानी उस महिला को पढ़नी चाहिए जो कभी अपने पति से, कभी राह चलते लफंगों, कभी रिश्तेदारों, तो कभी किसी और से प्रताड़ित होने की बात करती हैं. सुसान का अपने पहले पति से तलाक हो चुका था. किन्हीं कारणों से सुसान के पति ने उसे मारने के लिए खरीदे हुए बदमाशों को भेजा. सुसान तभी घर में अकेली थी. गुंडे उसके घर में घुसे और उसका गला एक बदमाश के हाथों में दबा हुआ था. उसे लगा अब उसका मरना तय है लेकिन उसने हार नहीं मानी. पलट कर उसने गुंडों पर वार किया, उनसे अपने असली हमलावर का नाम पूछा और उन्हें मौत के घाट उतार दिया. कहानी कुछ और होना था पर सुसान के बदले उसे मारने आए गुंडे मरे पड़े थे. यह सुसान की दिलेरी का कमाल था.
किसी से सुना होगा कि डरने वालों को और डराया जाता है. महिलाओं के कमजोर हालात और उनकी सुरक्षा पर सरकारी, गैर सरकारी तौर पर कई प्रयास किए जाते हैं, तमाम तरह की बातें की जाती हैं. किसी जगह अगर वे बातें होती हैं तो नि:संदेह महिलाएं सुरक्षित होंगी पर इन सबमें एक बात जो सबसे जरूरी है वह है अपने लिए महिलाओं की खुद की सोच बदलने की. महिलाओं की दशा सुधारने के लिए महिलाओं के लिए समाज की सोच में बदलाव लाना बेहद जरूरी है पर साथ ही यह भी एक बड़ा सच है कि इससे भी पहले अपने लिए महिलाओं की खुद की सोच बदलनी जरूरी है. हिन्दी में एक कहावत है ‘मन के हारे हार है’. जिस तरह सुसान ने किया अगर हर महिला खुद को लाचार समझकर बने हुए खराब हालात पर खुद को छोड़ देने की बजाय उससे निपटने में खुद को सक्षम समझने लगे और उससे निपटने में अपनी कोशिशें लगाने लगे तो ही महिलाओं की दशा सुधर सकती है और हकीकत में महिलाएं कमजोर कहलाने से उबर सकती हैं.
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