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वह पढ़ी-लिखी सरपंच है

स्त्री दर्पण
स्त्री दर्पण
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भारत की आधी दशा और दिशा अगर युवाओं पर निर्भर है तो महिलाएं भी उन युवाओं में अपनी हिस्सेदारी निभा रही हैं. स्त्री शिक्षा और विकास हमेशा ही बहस का एक बड़ा मुद्दा रहा है. पर स्त्री शिक्षा का विकास में योगदान पर कभी चर्चा नहीं होती. स्त्रियों का चरित्र ही कुछ यूं दबी-सहमी, कुचली हुई गढ़ दी गई है कि जिसे देखो बस अपना नाम कमाने के लिए स्त्रियों के विकास पर 50 लाइनें बोल देता है. अरे, जरा उन स्त्रियों पर भी तो कभी चर्चा कर लो जो न केवल एक पढ़ी-लिखी नारी हैं, बल्कि देश और क्षेत्र के भविष्य के लिए औरों से अलग हटकर काम कर रही हैं, देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं!


राजस्थान अपने मरुस्थलीय भौगोलिक विशेषता के अलावे लड़कियों-स्त्रियों की दयनीय स्थिति के लिए भी जाना जाता है. स्त्री-भ्रूण हत्या के सबसे ज्यादा मामले यहीं होते हैं. इसके अलावे महिला-पुरुष दर में सबसे ज्यादा असंतुलन में यही प्रदेश सर्वोच्च स्थान रखता है. इसके साथ ही शादी के लिए महिलाओं की कमी के कारण देश के अन्य प्रदेशों से महिलाओं की खरीद के मामलों में भी यह पीछे नहीं. मतलब सरसरी निगाह डालें तो महिलाओं की हालत यहां बद-से-बदतर है पर इसी प्रदेश में छवि राजावत (Chhavi Rajawat) भीड़ से अलग एक महिला बनकर उभरी हैं. छवि देश के प्रतिष्ठित संस्थानों से उच्च शिक्षा प्राप्त एक एमबीए डिग्री होल्डर भी हैं. पर उनकी खासियत है कि इस उच्च शिक्षा के बावजूद उन्होंने अपने गांव को नहीं छोड़ा और आज वे अपने गांव सोदा की सरपंच हैं.

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chhavi rajawat rajasthanछवि राजावत ने स्कूल की पढ़ाई आंध्र प्रदेश से की, मायो कॉलेज गर्ल्स स्कूल, राजस्थान से आगे की पढाई करने के बाद उन्होंने दिल्ली के प्रतिष्ठित लेडी श्रीराम कॉलेज से उच्च शिक्षा ली. पर छवि यहीं नहीं रुकीं. उन्होंने इसके बाद पुणे से एमबीए भी किया. जाहिर सी बात है एमबीए की डिग्री के बाद हर कोई ऊंची नौकरी, ऊंचे वेतन पर, बड़ी कंपनी में काम करने का सपना देखता है. छवि ने भी कुछ दिनों तक टाइम्स ऑफ इंडिया, कार्लसन ग्रुप ऑफ होटल्स, एयरटेल आदि प्रतिष्ठित कंपनियों में काम किया. पर आज आप शायद यकीन न करें कि यह सब छोड़कर वह राजस्थान के अपने गांव सोदा की सरपंच हैं. राजस्थान के टोंक जिले के सोदा गांव की यह सरपंच एमबीए डिग्री रखने वाली शायद पहली सरपंच होगी. महिला तो छोड़िए, यह पुरुषों के लिए भी एक मिसाल है.


भारत के लगभग हर प्रदेश की यह कहानी है कि युवा पढाई के लिए बाहर जाकर वापस नहीं आते, उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाकर वापस न आने वाले युवाओं के लिए भारत हमेशा दुखी रहा है, क्योंकि यहां आकर वे अपने देश तथा प्रदेश के लिए उस शिक्षा का उपयोग कर बहुत कुछ कर सकते थे. पर वे ऐसा नहीं करते. ऐसे में छवि राजावत का यह कृत्य सभी युवाओं के लिए मिशाल बन जाता है.

Chavi Rajawat




छवि कहती हैं कि वे अपने गांव में बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि समस्याओं को सुधारने के लिए कुछ करना चाहती हैं. छवि के दादाजी भी सरपंच थे. छवि चाहती हैं कि अपनी एमबीए की शिक्षा का उपयोग वह अपने गांव की इन मूलभूत समस्याओं को हल करने में करें. एमबीए की डिग्री के साथ वह कहीं भी अच्छे पद पर काम कर सकती थीं. पर उन्होंने अपना आखिरी लक्ष्य अपने गांव का विकास बनाया. छवि के अनुसार वह भी अपने गांव की एक साधारण महिला ही हैं, फर्क बस इतना है कि उन महिलाओं से अलग उन्हें बाहर जाकर पढ़ने का मौका मिला.

women empowerment

छवि राजावत सशक्त महिला की एक मिशाल हैं, एक उदाहरण कि महिलाएं अगर चाहें तो कुछ भी कर सकती हैं. समाज के लिए मिशाल भी कायम कर सकती हैं. अपने अब तक के कार्यकाल में छवि ने अपने गांव में पानी, घर-घर में शौचालय सुविधा आदि पर उल्लेखनीय काम किया है. टाइम्स ऑफ इंडिया ने इनकी राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रशंसा की. 2011 में विश्वस्तरीय इंफोपॉवर्टी वर्ल्ड कॉंफ्रेंस में भी इन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया. आइबीएन लाइव ने इन्हें “वर्ल्ड इंडियन लीडर’ सम्मान से सम्मानित किया.


छवि राजावत का यह कार्य साहसिक और आज हर वर्ग के युवाओं के लिए प्रेरणा है. महिला शक्ति का एक अदम्य उदाहरण छवि राजावत वास्तव में प्रशंसनीय और पथप्रदर्शक हैं.

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