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महिलाओं को हमेशा घरेलू का तगमा देकर समाज की मुख्यधारा से अलग कर दिया जाता है. पर आज की महिलाएं मुख्यधारा में भी अपने महत्व को साबित कर रही हैं. गौर करने वाली बात यह है कि यह बदलाव सिर्फ शहरी क्षेत्रों के लिए नहीं है. ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में भी ऐसे बदलाव बहुतायत में दिख रहे हैं. सिर्फ इन बदलावों की धुरी पर हम संपूर्ण महिला वर्ग के उत्थान का दावा तो नहीं कर सकते लेकिन इन बदलाओं को इस उत्थान का परिचायक होने से नकार भी नहीं सकते. खासकर जब राजस्थान जैसी जगह जो महिलाओं के बद्तर हालात के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है, वहां अगर कोई महिला, वह भी बिना किसी सामाजिक सहायता के पूरे गांव के लिए बिजली जैसी जरूरी सुविधा उपलब्ध करवाती है और उसे हेय नजर से देखने वाले समाज को अपना मान करने के लिए बाध्य करती है, तो निश्चय ही उस महिला की यह बहुत बड़ी उपलब्धि है और अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत.
संतोष देवी राजस्थान के एक छोटे से गांव की एक दलित महिला हैं. पर 23 वर्षीय इस महिला की पहचान आज अपने गांव में सोलर इंजीनियर के रूप में होती है. इतना ही नहीं यह भारत की पहली दलित सोलर इंजीनियर हैं. इन्हें देखकर आपको कहीं भी इनकी यह पहचान जाहिर नहीं होगी. पर इनका काम देखकर आपको इनकी दक्षता समझ आएगी. साधारण सी साड़ी में सर पर पल्लू लिए गांव की साधारण औरत दिखने वाल्री संतोष देवी ने अपने पूरे गांव को बिजली की समस्या से मुक्ति दिलाते हुए सोलर ऊर्जा के लिए मशीनों का सेटअप कर सौर ऊर्जा का प्रबंध किया. इसके अलावे आज किसी भी घर में इससे संबंधित समस्या होने पर वही इसे ठीक करने के लिए भी उत्तरदायी भी हैं. इसके लिए गांव वालों से थोड़ा शुल्क लेकर वह परिवार की आर्थिक मदद भी कर रही हैं.
एक तो महिला, उस पर भी दलित महिला होना संतोष देवी के लिए इस राह में आगे बढ़ने के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी. उच्च वर्ग के लोग उन्हें इसके लिए ताने देते थे. उनके सामने आते ही संतोष को घूंघट करना पड़ता था. इसके बावजूद अगर वह इस मुकाम पर पहुंच सकीं तो इसमें बेयरफुट कॉलेज का बहुत बड़ा हाथ रहा. राजस्थान के जयपुर शहर से 100 किलोमीटर दूर तिलोना में बेयरफुट कॉलेज गांवों में बिजली की अनुपलब्धता की समस्या दूर करने के लिए ग्रामीण इलाकों के लोगों को सोलर ऊर्जा तकनीक स्थापित करने का प्रशिक्षण देता है. इसमें पुरुषों के अलावे महिलाएं भी होती हैं. अब वह 1500 से भी अधिक महिलाओं को इस तकनीक का प्रशिक्षण दे चुकी हैं.
बालाजी की धानी (Balaji Ki Dhani) गांव में संतोष देवी को छोड़कर सभी घर कच्चे मकान या मिट्टी के घर हैं. एकमात्र संतोष का घर ही पक्का मकान है, यह संतोष ने अपनी कमाई से बनाई है. इसके लिए इस पक्के मकान में दो बेडरूम और एक किचन के अलावे एक और कमरा भी है जहां वह सोलर ऊर्जा के अपने सारे साजो सामान रखी हुई हैं. यहां वह आज कम से कम 6 घंटे बिताती हैं. संतोष का लगभग 3 साल का एक छोटा बच्चा भी है. अपने पति, बच्चे और सास-ससुर के साथ वक्त बिताने के अलावा वह अपने इन सोलर उपकरणों की देखभाल में भी वक्त बिताती हैं और अगर गांववालों के उपकरणों में कोई दिक्कत हुई तो उसकी मरम्म्त भी करती हैं. जबकि सोलर इंजीनियर बनने से पहले संतोष खेतों में काम करती थीं और उनके पास अपने लिए आराम का थोड़ा भी वक्त नहीं था. आज भी जब वह गांव की अन्य औरतों को खेत में काम करती देखती हैं तो खुद पर गर्व अनुभव करती हैं. संतोष आज अपने गंव वालों के लिए एक महिला या दलित महिला नहीं, बल्कि उनके लिए बिजली का इंतजाम करने वाली सोलर इंजीनियर हैं. आज उच्च जाति के बूढ़े भी उन्हें इज्जत की नजर से देखते हैं और उनकी मदद की दरकार रखते हैं.
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हालांकि यहां राजस्थान की संतोष देवी का उल्लेख है पर संतोष देवी जैसी कई महिलाएं अन्य भारतीय ग्रामीण इलाकों में उभर चुकी हैं. हो सकता है कि संतोष की तरह उनकी कहानियां हम नहीं जानते, पर ऐसी ही महिलाएं महिला सशक्तिकरण के लिए वास्तव में उल्लेखनीय हैं. साथ ही यह इस बात की भी परिचायक है कि किसी भी प्रदेश, किसी भी वर्ग की महिलाएं अगर करना चाहें तो बहुत कुछ कर सकती हैं बस जरूरत है दिशा ढूंढ़ने की.
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