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क्या आज भी चित्रलेखा की तलाश जारी है ? (पार्ट-3)

स्त्री दर्पण
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उपन्यासकार भगवतीचरण वर्मा के ‘चित्रलेखा’ उपन्यास के एक छोटे से अंश से हमने ‘क्या आज भी चित्रलेखा की तलाश जारी है?’ नाम से लेख लिखने का सिलसिला जारी किया और आप से एक सवाल भी पूछा कि ‘औरत की जिंदगी में पुरुष नाम का सहारा क्यों’ ?. आज वो समय आ गया है जब हम आपको अपने इस लेख श्रृंखला के अंतिम आलेख से समाज की सच्चाई का वो आइना दिखाएंगे जिससे आपके मन में हजारों सवालों की भीड़ तो लग जाएगी पर आपको स्वयं ही उत्तर की प्राप्ति भी हो जाएगी.


women empowerment 2‘औरत की जिंदगी में पुरुष नाम का सहारा क्यों’? इस विषय को आधार बनाकर बहुत सी ऐसी बातें आपको बताई गईं जिन्हें शायद हम देख के भी अनदेखा कर देते हैं. औरत की तुलना पालतू जानवर से की जिसे जो सिखाया जाए वो ही सीखता है और जैसा बोला जाए वैसा ही करता है. माता-पिता की सोच पर भी प्रहार किया क्योंकि बहुत कम ही लड़कियों के माता-पिता अपनी लड़कियों में सवाल पूछने और अपने निर्णय स्वयं लेने की क्षमता को जगा पाते हैं. इसलिए शायद तमाम जिंदगी एक औरत पुरुष नाम के सहारे को खोजती रहती है. तमाम ऐसी बातें आपको बताई गईं जो आपके मन की भावना को झकझोर दें.

यहां लड़कियां खुद बेचने को तैयार हैं


आखिर क्यों एक औरत अपनी तमाम जिंदगी पुरुष नाम का सहारा खोजती रहती है’, क्यों एक औरत स्वयं निर्णय नहीं ले पाती है’ और क्यों मर्दवादी समाज इस बात का चुनाव करता है कि कौन सी महिला समाज का अंग होगी और कौन सी नहीं’. यह सभी वो सवाल हैं जो कहने को तो प्रश्न थे पर इनके भीतर ही इनका उत्तर निहित था.


तीसरी और इस विषय की लेख श्रृंखंला की अंतिम कड़ी में सरकार के झूठे वादों की तरह हम कोई बड़ी-बड़ी बातें नहीं करने वाले हैं कि तमाम कानून और संविधान में महिलाओं को दिए गए अधिकारों से उनकी समाज में स्थिति सुधर जाएगी जिससे उन्हें पुरुष नाम का सहारा नहीं लेना पड़ेगा. दहेज विरोधी कनून (धारा 304)में आजीवन कारावास, बलात्कार (धारा 376) 10 वर्ष तक कीसजा या उम्रकैद, महिला भारतीय दंड संहिता की धारा 498 के तहत ससुराल पक्ष के लोगों द्वारा की गई क्रूरता के खिलाफ कानून, महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 जैसे तमाम और हजारों ऐसे अधिकार हैं जिनका हवाला देकर समाज में महिलाओं की स्थिति बेहतर बना देना का जिम्मा उठाया जाता है पर शायद हम यह भूल जाते हैं कि महिलाओं को अपने ही अधिकारों का प्रयोग करने के लिए मर्दवादी समाज की आज्ञा लेनी होती है.

हद पार हुई तब मौत की गुहार लगाई


आपको हमारी इस बात पर यकीन नहीं होता होगा चलिए एक उदाहरण आपको बताते हैं. जब किसी लड़की का बलात्कार किया जाता है तो उसके बाद वो अपने पिता से पूछती हैं कि क्या वो उसकी इज्जत को सरेआम नीलाम करने वाले व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा सकती है. इस उदाहरण के बाद आपको हमारी बात कड़वी जरूर लगी होगी पर समझ जरूर आ गई होगी.


भगवान ने औरत के शरीर के अंग को पुरुष से भिन्न बनाया जिसके पीछे का कारण सिर्फ एक पुरुष और औरत में भिन्नता दिखाना था पर मर्दवादी समाज ने उस भिन्नता को निम्न और उच्च का दर्जा दे दिया. एक लड़की जब जन्म लेती है शायद तब ही उसे यह सिखा दिया जाता है कि ‘देख बच्ची तेरे शरीर के अंग पुरुष से भिन्न हैं तो तू अपनी तमाम जिंदगी पुरुष की सेवा में ही व्यतीत करना और हां, याद रहे पुरुष के सहारे के बिना कोई भी काम मत करना’. अब आप ही बताइए जब जन्म से ही एक लड़की को पुरुष नाम का सहारा लेने का पाठ पढ़ा दिया गया फिर कैसे उस लड़की से आगे चलकर उस सहारे के बिना चलने की उम्मीद की जा सकती है.


उम्मीद करते हैं कि आपको अपने सभी सवालों के जवाब मिल गए होंगे. अब आपके और हमारे बीच अगली चर्चा वेश्यावृति पर होगी.

तड़पती रही चिल्लाती रही लेकिन गर्भपात नहीं हुआ

यहां मौत के घाट उतारा जाता है


Web Title: women struggle stories

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