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इस हौसले को कीजिए सलाम

स्त्री दर्पण
स्त्री दर्पण
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महिलाओं को एक परिवार की निर्मात्री माना जाता है. आज महिलाएं घर से निकलकर बाहर भी सक्रिय योगदान दे रही हैं. शिक्षा, विज्ञान जगत से इतर भी समाज कल्याण, महिला कल्याण, पर्यावरण सुधार, औद्योगिक विकास से जुड़े कई कार्यक्रमों में भी ये उल्लेखनीय योगदान दे रही हैं. कई ऐसी महिलाएं हैं जिन्होंने सामाजिक सोच और आशा से विपरीत सामाजिक विकास में योगदान देते हुए अपनी अलग पहचान बनाई है.

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उत्तराखंड (Uttarakhand) के कुमाऊं (Kumaon) पहाड़ी क्षेत्र में स्थित ‘अवनी’ एक स्वायत्त संस्था है. रश्मि भारती इसकी को-फाउंडर हैं. 1997 से अवनि कुमाऊं पहाड़ी क्षेत्र में सौर ऊर्जा के विकास के साथ आंचलिक लोगों को क्राफ्ट एवं अन्य उद्योगों के जरिए वहां के सामान्य जन-जीवन के विकास के लिए प्रयासरत है. संस्था की को-फाउंडर, दिल्ली में पली-बढ़ी रश्मि भारती 1996 में भीड़ से अलग पहाड़ी लोगों के विकास के लिए कुछ करने की चाह के साथ जब यहां आई थीं तो उन्होंने अवनी के निर्माण और इसकी इस सफलता के बारे में सोचा तक नहीं था. बकौल रश्मि “वे और उनके पति शहर की भीड़-भाड़ और उबाऊ माहौल से दूर एक आश्रम में मिले थे. वहां से निकलकर उनके पास दो रास्ते थे एक तो कि वे इसी भीड़ में शामिल होते हुए पैसे कमाने की धुन में शामिल हो जाएं, दूसरा कि अपना अलग रास्ता बनाएं. पैसे कमाने की पहली शर्त थी कि जितना ज्यादा समय दोगे, उतना ज्यादा पैसा कमाओगे जिसके लिए हम खुद को फिट नहीं समझ रहे थे. अत: एक ग्रामीण एनजीओ (NGO) में आने लगे. यहीं काम करते हुए हमें लगा कि हम शहरी सुविधाओं के अभाव में जी रहे और शहरी वातावरण के लिए अनुपयुक्त ग्रामीण, पिछड़े या मुख्य आबादी से अलग लोगों के लिए कुछ कर सकते हैं. क्योंकि मुझे और मेरे पति को पहाड़ों से बहुत लगाव था इसलिए हमने कुमाऊं का पहाड़ी इलाका अपने कार्यस्थल के रूप में चुना.”


अवनि से जुड़े अपने अनुभवों को याद करते हुए रश्मि कहती हैं कि जब वे वहां गई थीं वे जाड़े के दिन थे. बहां न बिजली था, न पानी और न शौचालय की सुविधा. बर्फबारी के दिन थे और जो कमरा उन्हें मिला था उसमें खिड़कियां तक टूटी थीं. उन्होंने ऐसे में अपने आप को काफी मजबूत किया. वे वहां कुछ दिनों के लिए छुट्टियां मनाने नहीं आई थीं बल्कि एक नई जिंदगी शुरू करने आई थीं जो वहां के स्थानीय जनजीवन के लिए भी उत्तरदाई होता. इसी संकल्प के साथ शुरुआत के संघर्ष के दिन उन्होंने हिम्मत से गुजारे, लड़कियां तक काटनी सीखी. वह ऐसी जगह थी जहां रात में आपको तेंदुए की आवाज भी सुनाई दे सकती थी. उस वक्त अपने घर की मरम्मत करने जैसे कई शुरुआती काम उन्होंने खुद ही किए. 1997 में इसी संकल्प और हिम्मत के साथ अपने पति के साथ मिलकर उन्होंने अवनि सामाजिक संस्था की शुरुआत की.

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आज अवनि अपने संकल्प को पूरा करने में नित नई सफलता प्राप्त कर रही है. हमने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में यहां के लोगों के साथ मिलकर कार्य किया है. साथ ही हस्त निर्मित उद्योगों को भी यहां के स्थानीय लोगों की औद्योगिक क्षमता बढ़ाने के लिए बढ़ावा दिया है. अवनि की सफलता आज किसी परिचय की मुहताज नहीं है. कुमाऊं प्रदेश में औद्योगिक और जनजातीय विकास के लिए इसे कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं. 2011 में रश्मि भारती को ग्रामीण उद्योगों के विकास में असाधारण योगदान के लिए (Outstanding contribution towards Rural Entrepreneurship) जानकीदेवी बजाज पुरस्कार, 2011 से सम्मानित किया गया. महिंद्रा राइज: स्पार्क दी राइज की पृथ्वी की केयर के लिए (Caring for the Earth) में अवनि राउंड टू की विजेता रहीं. 2011 में ही सामाजिक उद्योगपतियों के लिए बिजनेस प्लान प्रतियोगिता (Business plan competition for social entrepreneurs) में अवनि विजेता रहीं तथा इसे वांट्राप्रेन्योर(Wantrapreneur) 2011 घोषित किया गया. 2011 में ही उत्तराखंड सरकार के ऊर्जा मंत्रालय ने गैर-सरकारी संस्थानों की श्रेणी में (under the category of ‘Non-Government Organization’) ऊर्जा संरक्षण में अतुलनीय योगदान के लिए अवनि को ‘एनर्जी कंजर्वेशन अवार्ड, 2011 (Energy Conservation Award 2011)’ से सम्मानित किया.


हालांकि रश्मि के हौसलों ने अवनि को एक आसमान दिया है पर इसकी राह में आज भी मुश्किलें कम नहीं हैं. बकौल रश्मि तकनीकी विकास को बढ़ाने के लिए शहरी क्षेत्र के प्रशिक्षित लोगों को स्थायी तौर पर लंबे समय तक यहां काम करने के लिए रखना आज भी चुनौतीपूर्ण है. शहरी क्षेत्र के लोग आज भी सुविधाओं के अभाव में इन दूर-दराज के इलाकों में आना नहीं चाहते. अगर आ भी जाएं तो लंबे समय तक रहना नहीं चाहते जबकि अवनि के तकनीकी विकास और स्थानीय लोगों को उद्योग के लिए प्रशिक्षित करने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है. पर रश्मि ने इन मुश्किलों से हार नहीं मानी हैं. अवनि की नींव जब उन्होंने रखी थी तब इसके लिए मूलभूत सुविधाएं जुटाना भी एक चुनौतीतिपूर्ण कार्य था. अब आज जबकि यह इस शिखर पर पहुंच चुका है तब रश्मि इसे एक और ऊंचाई देते हुए यहां के पहाड़ी जीवन को एक नई दिशा देने के लिए कटिबद्ध हैं. रश्मि का यह हौसला हर महिला के लिए गौरवान्वित करने वाला है.



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