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आम लड़की से IAS टॉपर बनने तक का सफर

स्त्री दर्पण
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एक दौर था जब महिलाओं को पुरुषों की तुलना में पिछड़ा और हीन समझा जाता था, जिसके परिणामस्वरूप बहुत सी बच्चियों को तो पैदा होते ही मार दिया जाता था. अगर ऐसा नहीं किया जाता तो फिर उन्हें ना तो शिक्षा का अधिकार दिया जाता था और ना ही वह अपने ऊपर होने वाले जुल्मो-सितम के प्रति आवाज उठा सकती थीं. घर की चार-दीवारी में ही कैद रहने के कारण उसका दर्द भी कभी बाहर नहीं आ पाता था. समय बीता और ऐसा समझा जाने लगा कि महिलाओं को भी जीवन का समान अधिकार है. इसीलिए उन्हें पुरुषों की बराबरी का दर्जा देकर उन्हें आगे बढ़ने के कई मौके दिए गए. पर अब लगता है महिलाओं ने इन मौकों का इस्तेमाल बखूबी किया है जिसकी वजह से आज वह ना सिर्फ पुरुषों की तरह अपने पैरों पर खड़ी हैं बल्कि व्यवसाय, जॉब, पढ़ाई आदि जैसे क्षेत्रों में उनसे आगे भी बढ़ती जा रही हैं.


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स्कूल और कॉलेज की परीक्षाओं की तो बात ही छोड़िए इनमें तो लड़कियां हमेशा से ही पुरुषों से काफी आगे रही हैं लेकिन अब देश की सबसे बड़ी सिविल सेवा परीक्षा में भी एक महिला ने ही बाजी मारी है. केरल की रहने वाली हरित वी. कुमार ने सिविल सर्विसेज परीक्षा 2012 में टॉप किया है. इतना ही नहीं सामान्य, अनुसूचित जाति और जनजाति श्रेणी तीनों वर्गों में टॉप करने वाली युवतियां ही हैं.



हरित वी. कुमार का कहना है कि जब फोन पर दोस्तों ने यह खुशखबरी दी तो उन्हें अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ. तीन बार असफलता का स्वाद चखने के बाद जब चौथी बार आखिरकर उन्हें सफलता मिली तो अपनी किस्मत पर विश्वास ही नहीं हुआ कि ऐसा सच में हो सकता है.


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आपको बता दें कि सिविल सेवा परीक्षा के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब केरल के नागरिक ने प्रथम स्थान ग्रहण किया है. उल्लेखनीय तथ्य यह है कि लगातार तीसरी बार महिलाएं ही यूपीएससी की परीक्षा में अपना परचम लहरा रही हैं. पिछली बार यानि वर्ष 2011 में दिल्ली के एम्स अस्पताल से स्नातक शेना अग्रवाल ने आईएएस परीक्षा टॉप की थी और 2010 में विधि स्नातक दिव्यदर्शिनी ने बाजी मारी थी.


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कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग के अनुसार भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय विदेश सेवा और भारतीय पुलिस सेवा जैसी केंद्रीय सेवाओं में नियुक्ति के लिए इस साल 998 लोगों को चयनित किया गया है जिनमें से 753 और 245 युवतियां हैं. भले ही परीक्षा उत्तीर्ण करने वाली युवतियों की संख्या कम है लेकिन कम ही महिलाओं ने वो काम कर दिखाया जिसकी उम्मीद क्या, आज से कुछ समय पहले तक तो सोचना तक मुमकिन नहीं था.


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भले ही यह उपलब्धि कुछ महिलाओं की है लेकिन इससे वे महिलाएं, बच्चियां भी जरूर प्रभावित होंगी जिन्हें शिक्षा नहीं दी जा रही है. यहां तक कि वे अभिभावक जो सोचते हैं बच्ची को शिक्षा देना व्यर्थ है उन पर भी इस विशिष्ट उपलब्धि का सकारात्मक प्रभाव जरूर पड़ेगा.



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