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भारतीय समाज को पुरुषवादी समाज कहा जाता है. यहां परिवार का मुखिया पुरुष होता है. पुरुष अपना वर्चस्व दिखाने के लिए अकसर महिलाओं पर अपना बल प्रयोग करते रहे हैं. भारतीय परिवारों में मारपीट बेहद आम बात होती है और इसलिए यहां यह भी कहा जाता है कि पत्नियां पति के जूते की धूल होती हैं. लेकिन आज समय बदल चुका है. आज महिलाएं भी पुरुषों के साथ खड़े होने के लिए तैयार हैं और इसमें सरकार उनकी पूरी मदद करने के लिए प्रतिबद्ध है. भारतीय समाज को बदलने के लिए सरकार ने 2005 में एक अहम फैसला कर भारतीय परिवारों में होने वाली मारपीट और घरेलू हिंसा को बहुत हद तक रोकने का कार्य किया है. सरकार के जिस कदम की वजह से यह मुमकिन हो पाया है वह है घरेलू हिंसा महिला संरक्षण अधिनियम 2005. इस कानून ने पुरुषों को अपनी पत्नियों पर हाथ उठाने से पहले सौ बार सोचने पर विवश कर दिया है कि क्या वो सही कर रहे हैं और इसका अंजाम क्या होगा?
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एक स्थिति: कोमल की कहानी
कोमल एक साधारण परिवार की लड़की थी लेकिन वो देखने में काफी सुंदर थी इसलिए उसका रिश्ता एक अमीर घराने में तय हुआ था. उसके माता-पिता सबसे कहते नहीं थकते थे कि उनकी बेटी का रिश्ता एक संपन्न घराने में तय हुआ है और लड़का काफी पैसे वाला है. शादी के कुछ महीने तक तो सब कुछ ठीक था लेकिन धीरे-धीरे हालात खराब होने लगे. तब तक कोमल दो लड़कियों की मां बन चुकी थी. दो लड़कियां होने के कारण उसकी सास हमेशा उसके खिलाफ उसके पति के कान भरती रहती थी और फिर वो होना शुरू हुआ जिसके बारे में कोमल ने कभी सोचा भी नहीं था. उसका पति उसको रोज मारने लगा. रोज उसका पति शराब पी कर आता और कोमल को बिना किसी बात के मारता था. कोमल तो कुछ नहीं बोलती थी पर उसकी बेटी जो 15 वर्ष की थी उसको यह सब बहुत बुरा लगता था. एक दिन उसको अपने टीचर से इस कानून का पता चला. एक रात जब कोमल को उसके पति ने जानवरों की तरह पीटा तो अगले ही दिन उसकी बेटी ने अपने पिता के ही खिलाफ पुलिस में शिकायत की और अपने ही पिता के खिलाफ महिला संरक्षण अधिनियम 2005 के अंतर्गत केस ठोक दिया.
इस आरोप में उसके पति और सास को जेल हो गई. बाद में जब उसके पति ने उससे माफी मांगी और वादा किया कि वो ऐसा फिर कभी नहीं करेगा तब कोमल ने उसे माफ कर दिया और फिर उसके बाद से कभी भी उसके साथ मार-पीट नहीं हुई.
लेकिन इस कानून के प्रति जागरुकता की कमी की वजह से आज भी गांव-देहात और यहां तक की शहरों में भी लाखों महिलाएं अपने पतियों की बेवजह की मार खाने को विवश हैं. अगर इस कानून के बारे में सभी को पता हो तो यह आशा कि जा सकती है कि भारतीय समाज एक बेहद सुंदर समाज बनकर उभरेगा जहां महिलाओं को बेहद सम्मान की दृष्टि से देखा जाएगा क्यूंकि जब परिवार में ही बच्चों के सामने हम महिलाओं का आदर करेंगे तभी जाकर बच्चे भी समाज को एक बेहतरीन रवैया प्रदान कर सकेंगे. माना कि आज कई जगह महिला संरक्षण अधिनियम 2005 की आलोचना हो रही है और कई पुरुष संगठनों ने इसके खिलाफ बगावत कर रखी है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अकसर गेहूं के साथ घुन भी पिसता ही है.
क्या है घरेलू हिंसा
कोई भी पुरुष अपने घर की महिला को किसी भी प्रकार की शारीरिक या मानसिक यातनाएं देता है या फिर कोई अपशब्द कहता है जिससे उस नारी के सम्मान को ठेस पहुंचती है तो ये सब घरेलू हिंसा में आता है.
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घरेलू हिंसा के प्रकार कौन से हैं ?
व्यापक तौर पर घरेलू हिंसा के निम्नलिखित प्रकार हैं:
शारीरिक हिंसा – मारपीट करना, किसी अन्य गतिविधि से शारीरिक पीड़ा या क्षति पहुंचाना शारीरिक हिंसा के अंदर आता है.
लैंगिक हिंसा – बलात्कार करना, अश्लील साहित्य पढ़ने या देखने पर विवश करना, महिला के साथ दुर्व्यवहार करना, अपमानित करना, महिला की पारिवारिक और सामाजिक प्रतिष्ठा को आहत करना ये सब हिंसा लैंगिक हिंसा के अंदर आता है.
मौखिक और भावनात्मक हिंसा – अपमान करना, चरित्र पर दोषारोपण करना, पुत्र ना होने पर अपमानित करना, दहेज इत्यादि न लाने पर अपमानित करना, नौकरी ना करने या उसे छोड़ देने के लिए विवश करना, विवाह ना करने की इच्छा के विरुद्ध विवाह के लिए जबरदस्ती करना, किसी विशेष व्यक्ति से विवाह करने के लिए विवश करना, आत्महत्या करने की धमकी देना, कोई अन्य मौखिक दुर्व्यवहार करना.
आर्थिक हिंसा – बच्चों की पढ़ाई और उनके संरक्षण के लिए धन उपलब्ध न कराना, बच्चों के लिए खाना, कपड़ा, दवाइयां उपलब्ध न कराना, रोजगार चलाने से रोकना या उसमें रुकावट पैदा करना, वेतन इत्यादि से प्राप्त आय को ले लेना, घर से निकलने के लिए विवश करना, निर्धारित वेतन या पारिश्रमिक न देना.
उपरोक्त किसी भी स्थिति या केस में घरेलू हिंसा अधिनियम बहुत काम आता है. ये अधिनियम घरेलू आम महिलाओं को उनका हक और अधिकार दिलाता है. लेकिन सिर्फ कानून बनने से कुछ नहीं होता है. जब तक इसका प्रयोग महिलाओं के हित में नहीं होगा तब तक इसका कोई फायदा नहीं है और ये तभी संभव होगा जब नारी खुद जागरुक होगी और अपने अधिकारों को खुद पहचानेगी.
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कब प्रयोग किया जा सकता है घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005
परिवार का कोई भी पुरुष सदस्य अगर महिला को मारता है या उसके साथ अभद्र भाषा में बात करता है या फिर उसे किसी भी चीज के लिए विवश करता है तो वह घरेलू हिंसा के अंतर्गत आता है और इसके बाद वो औरत महिला संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उसके खिलाफ मामला दर्ज करा सकती है.
बड़े कमाल का है घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005
वर्ष 2006 में भारत सरकार द्वारा घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम 2005 लागू किया गया जिसके अनुसार महिला, वृद्ध अथवा बच्चों के साथ होने वाली किसी भी प्रकार की हिंसा अपराध की श्रेणी में आती है, और इसके दोषी पाए जाने पर कड़ी सजा का भी प्रावधान है. कोई भी महिला यदि परिवार के पुरुष द्वारा की गई मारपीट अथवा अन्य प्रताड़ना से ग्रस्त है तो वह घरेलू हिंसा की शिकार मानी जाएगी.
इस कानून का मुख्य बिंदु यह है कि इसके द्वारा साझा घर जैसी योजना का निर्धारण किया है. इसके अंतर्गत किसी भी महिला, चाहे वह बहन, विधवा, मां, बेटी, अकेली अविवाहित महिला आदि सभी को घरेलू संबंधों में सम्मिलित किया जाना जरूरी करार दिया गया है. उन्हें संपत्ति का अधिकार ना देते हुए भी, आवास संबंधी सभी सुविधाएं मुहैया कराना परिवार के मुखिया की जिम्मेदारी होगी.
इस अधिनियम ने घरेलू महिलाओं को सर उठाकर जीने का आजादी प्रदान की लेकिन सिर्फ सरकार की कोशिश से कुछ नहीं होता है जब तक नारी अपने अधिकार को लेकर जागरुक नहीं होगी तब तक कोई कुछ नहीं कर सकता है. इसलिए महिलाओं को अपना आने वाला कल बेहतर बनाने के लिए अपने अधिकारों को जानना होगा और उसे अपनाना होगा .
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