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जहर पीकर बदली जिंदगी….

स्त्री दर्पण
स्त्री दर्पण
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Saroj-हमारे शास्त्रों में नारी को एक प्रमुख और उच्च स्थान देकर सम्मनित किया गया है परन्तु जब बात व्यवहारिक रूप की हो तो भारतीय समाज में महिलाओं की वास्तविक स्थिति इससे बिलकुल अलग नजर आती है. हकीकत तो यही है कि आज हमारे समाज में नारी की स्थिती इतनी खराब हैं जिसे बयां कर पाना ही बहुत मुश्किल है. महिलाओं को प्रकृतिक रुप से कमजोर माना जाता है इसीलिए यह आम धारणा बन गई है कि उसे हर कदम पर किसी ना किसी पुरुष के सहारे की जरूरत पड़ती है. बिना किसी पुरुष के साथ के वह कभी सफल नहीं हो सकती.


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आज महिलाओं पर जिस तरह से अत्याचार किया जा रहा है, उनका शोषण किया जा रहा है, उन सभी के फलस्वरुप जीवन से हार मान जाने वाली महिलाओं से जुड़ी कई घटनाएं आपने सुनी होंगी लेकिन जिस महिला का हम यहां जिक्र करने जा रहे हैं उन्होंने अपने रास्ते में आने वाली हर मुश्किल को अपने हौसले के सामने झुकाया है और उन महिलाओं के लिए एक ऐसी मिसाल पेश की है जो अपनी पारिवारिक परिस्थितियों को नजरअंदाज कर अपने लिए कुछ करना चाहती हैं.


कल्पना सरोज एक ऐसी दलित महिला का नाम है. जिसने एक बार अपनी स्थिती से तंग आकर आत्महत्या करने की कोशिश की थी. पर वो कहते हैं ना कि दुनियां से आने और जाने, दोनों का वक्त तो ऊपर वाला तय करता है. शायद उस समय उनके जाने का नहीं बल्कि कुछ कर दिखाने का वक्त था. इसलिए तो वो जिन्दा बच गई.


अगर आपको यह किसी फिल्म की कहानी लग रही है तो हम आपको बता दें कि यह जीवन से हार मान चुकी एक महिला की सच्ची कहानी है जो आज अपनी मेहनत की वजह से आसमान की ऊंचाइयां छू रही है.


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कल्पना ने भी अपने शादी को ले कर कई सारे देखे थे. लेकिन पता नहीं किस की नजर लग गई कि सपना पूरा होते-होते रह गया. उनके मां- बाप ने मात्र 12 साल में ही उनकी शादी 10 साल बड़े व्यक्ति से कर दी थी. उसने जीवन से समझौता कर विवाह कर लिया. उसे खुशी थी तो बस इस बात की कि वह सपनों की नगरी मुंबई जा रही है.विवाह के बाद कल्पना मुंबई तो जरूर आ गई लेकिन वहां जाकर झुग्गी में रहना उनके लिए असहनीय था, उसके ऊपर ससुराल वालों का अत्याचार. कल्पना को वापस अपने पिता के घर जाना पड़ा. कल्पना का कहना है कि उनके पति के बड़े भाई और भाभी ना सिर्फ उनके साथ बुरा व्यवहार करते थे बल्कि उन्हें शारीरिक रूप से भी प्रताड़ित करते थे. वह प्रतिदिन इन सबसे जूझती थीं.


इस कारण वो लौटकर अपने मां-बाप के पास आ गई और आत्मनिर्भर बनना शुरू किया. अब इसे विडंबना ही कहेंगे कि पीड़िता होने के बावजूद हमारे समाज में पति को छोड़कर मायके आई महिला को घृणित नजरों से ही देखा जाता है. कल्पना सरोज समाज के नजरों का सामना नहीं कर पा रही थी और इसी ग्लानी में एक दिन उन्होंने जहर खा कर आत्महत्या करने की कोशिश की. लेकिन समय पर डॉक्टरी मदद मिलने के कारण वह बच गईं.


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इस घटना के बाद कल्पना ने यह निर्णय ले लिया कि वह मरने से पहले कुछ करना चाहती हैं. सोलह साल की उम्र में वह अपने एक परिचित के पास वापस मुंबई आ गईं और दर्जी का काम करने लगीं. शुरू में उन्हें एक दिन में 50 रुपए से भी कम मिलते थे लेकिन फिर उन्होंने औद्योगिक सिलाई की मशीन चलानी सीखी जिसके कारण उनकी आय में बढ़ोत्तरी हुई.


अब तक उनके जीवन में काफी बदलाव आ चुका था. इस काम के अलावा उन्होंने और भी काम शुरू किए.  वह दिन के 16 घंटे काम करती थीं जो आज भी कायम है.उम्र के परिपक्व मुकाम पर पहुंचने के बाद कल्पना ने एक व्यापारी से विवाह किया उनके दो बच्चे हैं. अपनी स्वतंत्र पहचान बना चुकी कल्पना को कमानी टयूब्स नामक कंपनी चलाने का मौका मिला जो कर्ज में थी.


लेकिन कल्पना ने अपनी मेहनत और लगन के कारण बंद होने की कगार पर पहुंच चुकी इस कंपनी की किस्मत पलट दी. आज कमानी ट्यूब्स 500 करोड़ रुपए से अधिक मूल्य की एक निरंतर बढ़ती हुई कंपनी है जिसके नाम पर मुंबई में दो सड़कें भी हैं.



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Tag: women,womenempowerment, women and society,कल्पना सरोज,kalpana saroj, दलित महिला

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