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हर रात इंतजार किया पर इस बार भी…

स्त्री दर्पण
स्त्री दर्पण
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पिटत 1हर रात इंतजार करना और फिर भी आपको जवाब में ‘नहीं’ सुनने को मिले तो शायद आपका रिश्तों पर से विश्वास उठ जाएगा. उस मासूम की कहानी भी ऐसी ही थी. हर रात इंतजार करती थी कि इस बार तो शायद उसे प्यार के बदले प्यार मिलेगा पर इस बार भी उस मासूम के साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ. जब से शादी हुई थी सिर्फ पति की मार सही थी. पति प्यार भी करता है ऐसा रूप तो शायद उसने कभी देखा ही नहीं था. आराधना का पति उसे पिछले सात सालों से सिर्फ मार रहा था. कभी कमर, कभी हाथ-पैर शायद ही उसके शरीर का कोई भाग ऐसा था जहां उसके पति की मार के निशान नहीं थे. तब भी वो हमेशा चुप रही इस इंतजार में कि कभी ना कभी तो उसे प्यार के बदले प्यार मिलेगा.


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‘बाबुल का कहा याद रहेगा’

यह आराधना ही नहीं लाखों महिलाओं की कहानी है पर सोचिए यह सब होने के बावजूद भी आराधना जैसी महिलाएं चुप रहती हैं. यह सोचकर कि ‘बापू ने कहा था कि जैसा भी है तेरा पति है. प्यार करे तब भी सही है मारे तब भी सही है. बेटा तेरी डोली जा रही है और अब अर्थी भी वहीं से उठनी चाहिए’.


आज महिला सशक्तिकरण की खूब चर्चा है. सरकार से लेकर मीडिया तक इस बात को दोहरा रहा है कि देश में महिलाओं की हालत में बदलाव आ गया है. अकसर कुछ प्रसिद्ध महिलाओं की सफलता की मिसाल दी जाती है. यह सच है कि औरतों की हालत में सुधार हुआ है. वे सामाजिक-आर्थिक रूप से समर्थ हो रही हैं  लेकिन यह बदलाव एक खास तबके तक ही सीमित है आज भी महिलाओं का बड़ा वर्ग पहले की तरह ही असहाय है. आज भी स्त्रियां भेदभाव और हिंसा का शिकार हो रही हैं. सशक्त समझी जाने वाली शिक्षित कामकाजी महिलाएं भी इससे बच नहीं पा रही हैं.


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भारतीय प्रबंधन संस्थान, बेंगलुरु और इंटरनैशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वूमन द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार उन शादीशुदा महिलाओं को, जो काम पर जाती हैं, घरेलू हिंसा का ज्यादा खतरा झेलना पड़ता है. जिन महिलाओं के पति को नौकरी मिलने में दिक्कत आ रही है या नौकरी में मुश्किलें आ रही हैं, उन्हें दोगुनी प्रताड़ना झेलनी पड़ रही है. शोध में चौंकाने वाली बात यह थी कि प्रेम विवाह करने वाली महिलाएं भी बहुत ज्यादा हिंसा झेल रही हैं.


परिवार में पहले हिंसा की शिकार मां हुआ करती थीं, अब बेटियां भी हो रही हैं. आंकड़े बताते हैं कि देश में पिछले दो दशकों में करीब 18 लाख बालिकाएं घरेलू हिंसा की शिकार हुई हैं. हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं के मुताबिक उन बालिकाओं की जान को खतरा बढ़ जाता है, जिनकी मां घरेलू हिंसा की शिकार होती रही हैं. जबकि ऐसा खतरा बालकों को नहीं होता. शोध के मुताबिक पति की हिंसा की शिकार औरतों की बच्चियों को पांच वर्षों तक सबसे ज्यादा खतरा होता है. हालांकि इसकी एक बड़ी वजह उपेक्षा भी है. लड़कियों के टीकाकरण तक में लापरवाही बरती जाती है. बीमारी में उनका इलाज तक नहीं कराया जाता. महिलाओं को न जाने कितने मोर्चों पर यंत्रणा झेलनी पड़ती है.


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आज लड़कियां जब शादी कर के अपने पति के घर आती हैं तो हजार सपने उनकी आंखों में होते हैं लेकिन वो सपने धरे के धरे रह जाते हैं जब उन्हें घरेलू हिंसा का  शिकार होना पड़ता है. हिंदी फिल्मों का एक विदाई गीत है – मैं तो छोड़ चली बाबुल का देश पिया का घर प्यारा लगे. दशकों से यह गाना बहुत लोकप्रिय रहा है पर अफसोस कि बाबुल का देश छोड़कर ससुराल जाने वाली बहुत सी महिलाओं के लिए यह गाना अब बिल्कुल जले पर नमक छिड़कने जैसा काम कर रहा है.


प्यार के बदले प्यार मांगा तो समाज ने बदले में नफरत ही दी है पर नारी की चुप्पी क्या इस समाज को नया नजरिया दे पाएगी. शायद नहीं, क्योंकि कोई भी चुप्पी समाज को बदल नहीं सकती है. नारी को अपने लिए आज नहीं तो कल आवाज उठानी ही होगी. नारी की दशा पर जागरण जंशन की तरफ से कुछ भावनात्मक पक्तियां समर्पित की जाती हैं:


बाबुल की कही हर बात याद रखी,

खामोशी से हर दर्द को सहन किया,

अब तो खुश होंगे बाबुल,

मेरी अर्थी ससुराल से ही रवाना हुई.



Please post your comments on: आपको क्या लगता है कि किसी भी महिला को पति की मार चुपचाप सहन करनी चाहिए?


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यहां हसीनाओं की कमी नहीं है



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