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“ अपने हौसले को ये मत बताओ कि तुम्हारी परेशानी कितनी बड़ी है
अपने परेशानी को ये बताओ कि तुम्हारा हौसला कितना बड़ा है ”
यह कहना है दयामनी बरला का जो एक आयरन लेडी के रुप में उभर कर सामने आई हैं. दयामनी ने अपनी आंदोलनकारी प्रवृत्ति के कारण पूरे झारखंड में तहलका मचाकर रखा हुआ है. जेल में बंद दयामनी बरला को अदालत ने मात्र दो घंटे के पैरोल पर छोड़ा था क्योंकि उन्हें अपनी भाभी के अंतिम संस्कार में शामिल होना था. दयामनी रांची में अपने छोटे से झोपड़ीनुमा होटल पहुंचीं जहां उनके साथी, शुभचिंतक और परिजन पहले से ही मौजूद थे. भाभी की मौत से गमगीन दयामनी अपने भाई जॉलेन बरला को देखते ही उनके गले लगकर रोने लगीं. दोनों भाई-बहन कुछ देर तक फफकते रहे. फिर जॉलेन ने दयामनी को चुप कराते हुए समझाया, ‘देख दयामनी, मां कहती थी कि घर में सभी भाई-बहनों में एक तुम्हीं सबसे लायक निकली हो. मां को तुम्हीं से किसी बड़े काम की उम्मीद थी. तुम कभी समझौता नहीं करना किसी से. कभी रोना नहीं और ना ही किसी से डरना. मरने से भी नहीं डरना. तुम तो जानती ही हो कि ईसा मसीह को सूली पर चढ़ा दिया गया था, तो क्या डरना!’
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24 घंटे पहले अपनी पत्नी की मौत से दुखी और गम में डूबे जॉलेन बिना किसी बनावट के यह बाते अपनी बहन को समझा रहे थे. माहौल अजीब था, वहां मौजूद लोगों की आंखों में से आंसू छलकने लगे थे, लेकिन रो रही दयामनी अब भाई की आंखों से आंख मिलाकर मुस्कुराने लगी थीं. जॉलेन का हाथ पकड़ते हुए वह बोलीं, ‘तुम लोग ही घर संभालते रहे हों, आगे भी अच्छे से संभालना. मुझ पर भरोसा रखना. वचन दे रही हूं कि कभी भी लोगों का भरोसा नहीं तोड़ूंगी, कभी समझौता नहीं करूंगी.’ इतना कहकर वे दोबारा जेल के लिए रवाना हो गईं.
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आखिर साधारण सी दिखने वाली दयामनी बरला को वह फौलादी ऊर्जा कहां से मिलती है जिसके बल पर उन्होंने लक्ष्मीनिवास मित्तल जैसे धनकुबेर उद्योगपतियों से लेकर ताकतवर सत्ता संस्थानों तक की नाक में दम कर रखा है? जल, जंगल और जमीन के लिए लड़ाई लड़ने वाली झारखंड की इस महिला की धमक आज राज्य के दायरे से बाहर निकल चुकी है. यही वजह है कि दो दशक से आदिवासियों के संग आंदोलन में खड़ी दयामनी को देश और दुनियां भर से समर्थन मिल रहा है.
दयामनी बरला कि तरह और भी औरते हैं जिन्होंने हर क्षेत्र में अपना परचम लहराया है. भारतीय समाज में जहां एक तरफ महिलाएं बिना किसी पुरुष के सहारे के बाहर नहीं निकलती हैं, जहां औरतों के साथ किसी ना किसी पुरुष का होना भी जरूरी माना जाता है, वहीं दयामनी बरला जैसी औरते ये साबित करती है कि समाज कि ऐसी सोच कितनी गलत है. समाज ये क्यों भूल गया है की आज जिस आजाद देश में वो चैन कि सांस ले रहा है उस देश के आजादी कि लड़ाई में भी औरतों का हाथ रहा है फिर क्यों आज औरतों पर इतनी पाबंदियां लगा दी गई हैं? क्यों उन्हें यह आजादी नहीं है कि वो अपने जीवन के एक भी फैसले खुद ले सके? जब भगवान ने दोनों के बीच र्फक नहीं किया तो ये समाज क्यों कर रहा है?
क्यों पुरुष समाज बार-बार यह अहसास दिलाता है कि औरते उनकी बराबरी नहीं कर सकती है? इस क्यों का नारी के साथ बड़ा ही पुराना संबध है आज से नहीं प्रचीन काल से ही नारी को हमेशा कठघरे में खड़ा किया गया है. पता नहीं नारी कब इस कठघरे से बाहर आएगी….!!
Tag: dayamani bralaa, empowerment, womenempowerment, आयरन लेडी, दयामनी बरला,
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