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तड़पती रही..चिल्लाती रही पर डॉक्टर ने हां नहीं की. कारण सिर्फ यह था कि धर्म इस बात की इजाजत नहीं देता है. यह बात समझ से परे है कि क्या धर्म किसी महिला की जिन्दगी से ज्यादा महत्वपूर्ण हो सकता है!! प्रेग्नेंसी के दौरान मुश्किलों का सामना कर रही एक भारतीय महिला की आयरलैंड के एक हॉस्पिटल में मौत हो गई, क्योंकि डॉक्टर ने अबॉर्शन करने से इनकार कर दिया. आयरलैंड के डॉक्टरों का कहना था कि यह एक कैथलिक देश है और यहां पर अबॉर्शन नहीं किया जा सकता है क्योंकि जब तक गर्भ में पल रहे भ्रूण की धड़कनें बंद नहीं हो जातीं, तब तक ऐसा नहीं किया जा सकता है.
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इस हादसे के बाद कैथलिक कानून में बदलाव को लेकर बहस तेज़ हो गई है. आयरलैंड में अभी तक गर्भपात पर एक राय नहीं बन पायी है. हालांकि हालात पहले जितने ख़राब नहीं हैं, लेकिन ‘एक्स केस’ के बीस साल बीतने के बाद भी इस मामले में देश का कानून साफ-साफ कुछ नहीं कहता है. ‘एक्स केस’ एक 14 साल की स्कूली लड़की का मामला था जो बलात्कार का शिकार होकर गर्भवती बन गई थी. प्रशासन उसे गर्भपात कराने की अनुमति नहीं दे रहा था, ऐसे में उस लड़की ने आत्महत्या कर ली थी. तब आयरिश सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि भ्रूण और मां दोनों को जीने का समान अधिकार है लेकिन आत्महत्या की आशंका को देखते हुए गर्भपात की अनुमति देनी चाहिए. लेकिन इसके बाद किसी सरकार ने कानून में बदलाव करने की कोशिश नहीं की, ताकि चिकित्सकों के सामने यह स्पष्ट हो पाए कि वह किन-किन परिस्थितियों में गर्भपात कर सकते है.
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महिला गर्भपात कराने पर सवाल
एक महिला जिसके लिए सबसे बड़ी खुशी मां बनना होती है और यदि किसी मजबूरी के कारण उसे अपना गर्भपात कराना पड़े तो एक मां के लिए इससे बड़ा और कोई दुख नहीं होता है. कन्या भ्रूण हत्या या विकलांग बच्चों की भ्रूण हत्या पर रोक समाज के लिए एक बड़ी चुनौती जरूर है पर इस बात का यह मतलब नहीं है कि जब वास्तव में एक महिला को गर्भपात की जरूरत हो तो उसे धर्म, कानून, समाज जैसे बंधनों में बांध दिया जाए. समाज में एक महिला की जिंदगी को महत्व नहीं दिया जाता है इसलिए जब समाज को महिला की जिंदगी और बच्चे की जिंदगी में से चुनाव करना होता है तो वो बच्चे की जिंदगी को चुनता है. समाज में महिला की स्थिति पुरुष प्रधान समाज ने इतनी दयनीय बना रखी है कि वो अपनी जिंदगी के फैसले भी खुद नहीं ले सकती है.
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सवाल केवल जिंदगी का
कैथलिक कानून के नाम पर यदि किसी महिला का यह जानते हुए भी कि उसकी जिंदगी को खतरा है, गर्भपात नहीं किया जाता है तो यह अपराध है. संसार का कोई भी धर्म यह नहीं कहता है कि जिंदगी से ज्यादा महत्वपूर्ण धर्म के कानून का पालन करना होता है. हर धर्म, हर धार्मिक किताब यही कहती है कि किसी की जिंदगी से ज्यादा कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है. यदि जीवन में कभी भी ऐसी दुविधा आए जहां एक तरफ धर्म हो और दूसरी तरफ किसी की जिंदगी हो तो धर्म का रास्ता छोड़कर किसी जिंदगी को बचाना चाहिए क्योंकि किसी की जिंदगी बचाने से बड़ा कोई और धर्म नहीं है.
भारत सरकार का कानून
भारत में सरकार कन्या भ्रूण हत्या को रोकने और समाज में महिलाओं को उनका स्थान दिलाने के हर कोशिश कर रही है. इसके अंतर्गत सबसे पहले गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 के अन्तर्गत गर्भाधारण पूर्व या बाद लिंग चयन और जन्म से पहले कन्या भ्रूण हत्या के लिए लिंग परीक्षण करने को कानूनी जुर्म ठहराया गया है. पी.एन.डी.टी.एक्ट 1994 के अंतर्गत प्रसव पूर्व और प्रसव के बाद लिंग चयन करना भी जुर्म है. भारत सरकार ने अधिनियम 1971 के अंतर्गत गर्भवती महिला को गर्भपात कराने की अनुमति भी कुछ स्थितियों में दे रखी है – जब बलात्कार के कारण महिला गर्भवती हो, जब गर्भवती महिला शारीरिक और मानसिक रुप से मजबूत ना हो, या फिर जब गर्भवती महिला का बच्चा विकलांग होने का शक हो.
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